मुठ्ठी में कोई आग छुपा कर तो देखिये |
दिल में किसी दिलबर को बसा कर तो देखिये ||
हमने पिए हैं अश्क़ तो पी लेगे ज़हर भी |
हाथों से अपने आप पिला कर तो देखिये ||
आ जायेगा दातों में पसीना ज़नाब के |
बिगड़े हुए दिलबर को मना कर तो देखिये ||
उम्मीद का दामन कभी छोडूगां मैं नहीं |
चट्टान से जिगर को हिला कर तो देखिये ||
गठरी गु़नाह की कर तो ली तैयार आपने |
कितना है इसमें बोझ उठा कर तो देखिये ?
डा० सुरेन्द्र सैनी
किस तरफ से इशारे हुए |
आप दुश्मन हमारे हुए ||
मुझको देकर फ़रेब-ए-वफ़ा |
फूल भी तो शरारे हुए ||
छोड़ दी जिसने शर्म -ओ -हया |
उसके रौशन सितारे हुए ||
ज़ीस्त क्या है पता तब चला |
मौत के जब नज़ारे हुए ||
है सियासत में इतना मज़ा |
सारे रिश्तें किनारे हुए ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
जो रौनक - ए - महफ़िल थी वो जिस पल चली गई |
उस पल से क़ायनात की हलचल चली गई ||
जाहिद हुए सरकार में शामिल तो देखिये |
हम मैकशों के हाथ से बोतल चली गई ||
ढेरों इनआम मिल गए सय्याद को मगर |
इंसाफ़ मांगती हुई बुलबुल चली गई ||
ग्रंथों में छापी जा रही कौवों की कावं-कावं |
गुमनाम कूकती हुई कोयल चली गई ||
शाम - ओ- सहर सिसक रहीं रोती रही शफ़क़ |
देकर जिन्हें उदासियाँ वो कल चली गई ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
एक था वो हमारा ज़माना |
एक है ये तुम्हारा ज़माना ||
पार हद सब किये जा रहा है |
ज़ुर्म की आज सारा ज़माना ||
मुफ़लिसी में हुआ क्या वो पैदा |
मुफ़लिसी में गुज़ारा ज़माना ||
उसको सूली चढ़ाया गया है |
जिस किसी ने सुधारा ज़माना ||
इसको देखोगे जैसी नज़र से |
देगा वैसा नज़ारा ज़माना ||
आपकी मुस्कुराहट पे करदूं |
मैं निछावर ये सारा ज़माना ||
क्या कभी वो घडी आ सकेगी |
ज़मज़मासंज हो सारा ज़माना ||
ज़मज़मासंज -- गीत गाता हुआ
डा० सुरेन्द्र सैनी
वादे लेकर के सारे बेकार के |
दर से झोली भर लाये सरकार के ||
मुफ़लिस घर का खा़विन्द तो मजबूर है |
कैसे बेग़म को दे दो पल प्यार के ||
कैसे - कैसे लीडर चुन कर भेजे हैं |
वोटर शायद चूक गए इस बार के ||
होटल जाने पर आमादा बच्चों को |
मैंने समझाया दो थप्पड़ मार के ||
मस्ज़िद कोई टूटी है इस पार यदि |
मंदिर भी तो टूटें हैं उस पार के ||
ख़ुद का हाल - ए - दिल कहना है नादानी |
घर पे जब पहुंचे हो इक बीमार के ||
चारागर ने फल खाना बतलाया है |
पर क्या हैं अब अच्छे फल बाज़ार के ||
डा० सुरेन्द्र सैनी