कैसे संभले दिल - ए - नातवाँ ?
लुट गया आज फिर कारवाँ ||
मानता ही नहीं मशविरा |
हर कोई हो गया बदगुमाँ ||
जुस्तुजू रोशनी की जो की |
आग बरसा गईं बिजलियाँ ||
जिनको छूना था साहिल कभी |
डूब के रह गईं कश्तियाँ ||
मैं जलाता रहूगां दिया |
तुम चलाते रहो आंधियाँ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
दर्द - ए - दिल की दवा कुछ नहीं |
उनकी हाँ के सिवा कुछ नहीं ||
आफ़तें , तोहमतें , ज़हमतें |
और उनसे मिला कुछ नहीं ||
किसकी खायें क़सम दोस्तों ?
पास अपने बचा कुछ नहीं ||
पास अपने बचा कुछ नहीं ||
मैं सरे आम लूटा गया |
फिर भी मैंने कहा कुछ नहीं ||
अपनी नज़रों से जो गिर गया |
इससे बढ़ कर सज़ा कुछ नहीं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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