जिसे मेरा ही हंसना बोलना अच्छा नहीं लगता |
मुझे भी देख ऐसा दिलरुबा अच्छा नहीं लगता ||
सितमगर हो जफ़ाजू हो ज़माना कुछ कहे लेकिन |
हमारे मुंह से ऐसा तज़किरा अच्छा नहीं लगता ||
नज़र उनकी पे गो हक़ उनका है चाहे जिसे देखें |
मगर गैरों से ऐसा सिलसिला अच्छा नहीं लगता ||
किया है वादा तो फिर कीजिये जी जान से पूरा |
बहाने से किसी को टालना अच्छा नहीं लगता ||
मैं पाबन्दी तो औरों पे लगा सकता नहीं लेकिन |
तुम्हें देखे कोई मेरे सिवा अच्छा नहीं लगता ||
तुम्हारी बेरुख़ी का तुम से शिकवा यूँ नहीं करते |
जवाबन तुम कहोगे फिर गिला अच्छा नहीं लगता ||
वफ़ा तुझ में है या मुझ में चलो ये फ़ैसला कर लें ?
हमें भी झगड़ा ये हर रोज़ का अच्छा नहीं लगता ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
पहले ख़ुद को हल्का कर |
फिर उड़ने की सोचा कर ||
नभ को छूना चाहे है |
अपने क़द को ऊंचा कर ||
चुभ जाती हैं कुछ बातें |
समझा कर फिर बोला कर ||
पागल है वो बकने दे |
मन अपना मत मैला कर ||
जा जाकर लोगों के घर |
सब के सुख दुःख बांटा कर ||
ज़ीनत बन जायें सब की |
ऐसी नस्लें पैदा कर ||
रस कानों में घोले जो |
मीठे नग़में गाया कर ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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