ज़ख़्म कितने खा चुके उनको गिनाते जाइए ?
और अपने हाल पे आँसूं बहाते जाइए ||
जाते - जाते इक ग़ज़ल हमको सुनाते जाइए |
जिंदगी का सच ज़रा सबको बताते जाइए ||
आज की तहज़ीब है बस रास्ता मिलने के बाद |
रहबरों के नक़्श - ए -पाँ ख़ुद ही मिटाते जाइए ||
इक न इक दिन आपकी सरकार बन ही जायेगी |
वोटरों को बस ज़रा दारु पिलाते जाइए ||
याद क्या कोई करेगा आपकी क़ुर्बानियाँ ?
आप तो बस सर झुकाकर सर कटाते जाइए ||
कान में डाले रुई सरकार बैठी है यहाँ |
बीन अपनी भैंस के आगे बजाते जाइए ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
अपने अख़लाक़ से जुदा होकर |
क्या मिलेगा तुझे बड़ा होकर ?
आदमीयत न पास है जिसके |
पुजना चाहे वही ख़ुदा होकर ||
ख़ूब इनआम है वफ़ा का ये |
सब से मैं रह गया बुरा होकर ||
चोट खाए हुओं पे हँसता है |
तू भी तो देख आशना होकर ||
रोज़ की वारदात क़ातिल की |
रह गई एक सिलसिला होकर ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment