महफ़िलों में आया जाया कीजिये |
कुछ तो लोगों पे भरोसा कीजिये ||
जानते हैं सब हक़ीक़त आपकी |
आप चाहे लाख़ पर्दा कीजिये ||
दूसरों को कोसना आसान है |
ख़ुद के बारे में भी सोचा कीजिये ||
देख फिर किस शान से मिलता है वो ?
प्यार के जज़्बात पैदा कीजिये ||
ख़ारा पानी मय में जायेगा बदल |
यूँ समंदर में न देखा कीजिये ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
कुछ देखा है ख़ास तुम्हारी आँखों में |
हमने सारी रात गुज़ारी आँखों में ||
सारी क़ायनात नज़र आ जायेगी |
देखो तो इक बार हमारी आँखों में ||
इनका हो बस काम सदा राहत देना |
अच्छी है न आग दुलारी आँखों में ||
किस पंछी को आज जुदा होना होगा ?
लेकर घूमे मौत शिकारी आँखों में ||
धोखा हम हर बार नहीं खा सकतें हैं |
क्यूँ झोके रे धूल मदारी आँखों में ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
दौर - ए- वहशत हुआ है शुरू |
खाक़ में मिल रही आबरू ||
ज़ीस्त की कर रहा आरज़ू |
मौत के होके मैं रू - ब- रू ||
उड़ गईं इस क़दर धज्जियाँ |
कौन दामन करेगा रफ़ू ?
यूँ तो दुनिया में लाखों हसीं |
पर कहाँ आपसा खू़बरू ?
तेरी नज़रों में मैं कुछ नहीं |
मेरी नज़रों में इक तू हो तू ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
आबले इक समंदर लिए पावँ में |
तुझको ढूंढा किये शहर में गावँ में ||
तू न पहचाने मुझको अलग बात है |
और सब जानते हैं तेरे गावँ में ||
जिस जगह पर हुआ अपना पहला मिलन |
इक कशिश सी है अनजानी उस ठावँ में ||
उनकी नज़रें बदलती रहीं इस तरह |
जैसे बदले हैं मौसम पहलगावँ में ||
आज उसके वही लोग क़ातिल हुए |
कल जो बैठे थे उस पेड़ की छावँ में ||
लाख़ चाहा संभलना मगर देखिये |
आ गए ज़िन्दगी हम तेरे दावँ में ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
इतना हमको दे बता तू ए चमन के बागबाँ |
हर जगह लाशें बिछीं हैं क़ब्र हम खोदे कहाँ ?
रहनुमाँ पत्थर बने हैं गिर रही हैं बिजलियाँ |
ख़ाक़ हमको कर ही देगीं आपकी खामोशियाँ ||
बेवजह हर वक़्त की ये छेड़खानी छोड़ दो |
क्यों मिटाने पर तुले हो क़ौम का नामोनिशाँ ?
बात सच कह दी किसी ने तो वो दुश्मन होगया |
जिस ने कर ली जीहुज़ूरी हो गया वो जाने - जाँ ||
गोश्त रिश्तेदार नोचें ख़ूँ पिए औलाद ये |
ज़ुल्म अपनों के सहे जाती हैं बूढी हड्डियाँ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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