Sunday 12 June 2011

सीधी सादी ग़ज़लें (जारी)


समय  की  आग  में  जो भी जला है |
उसीकी  आँख  में    इक  ज़लज़ला है ||

समय आख़िर किसी का कब टला है ?
यही जीवन मरण  का सिलसिला है ||

हमारा   मान    लेने    पर   तुला   है |
कहाँ  का  दूध  का तू  भी  धुला   है  ?

परिंदा    आसमाँ   में  उड़   चला  है |
शिकारी  साज़िशों   में   मुब्तला  है ||

तुम्हारे शहर   के  अमृत   से अच्छा |
हमारे   गावँ   का  पानी    भला  है ||

जो दिल  से काम लेते हैं उन्हें  तो |
सदा    ही  भावनाओं  ने  छला है || 

ख़ुदा क्या ख़ुद को भी मैं भूल बैठा | 
अरे  ये  इश्क़  देखो   क्या  बला है || 

चुराके    दिल   दिखाओ      पारसाई |  
हमें  बस  आपसे  ये  ही  गिला  है ||  

मेरी   बन्दूक   हो    कांधा  तुम्हारा |
यही  तो  आज  जीने  की कला है ||

वफ़ा  के  नाम   पर हम जान   देदें |
हमें  तो  ये  विरासत  में मिला है ||

मुसलसल लहर    टकराती  है  देखो |
नहीं  साहिल  हिलाए  से   हिला है ||

मेरा  तो  नाम  तक  भी भूल बैठा |
मगर ग़ैरों से क़ाफ़िर जा मिला है || 

                                                           डा० सुरेन्द्र सैनी  

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