समय की आग में जो भी जला है |
उसीकी आँख में इक ज़लज़ला है ||
समय आख़िर किसी का कब टला है ?
यही जीवन मरण का सिलसिला है ||
हमारा मान लेने पर तुला है |
कहाँ का दूध का तू भी धुला है ?
परिंदा आसमाँ में उड़ चला है |
शिकारी साज़िशों में मुब्तला है ||
तुम्हारे शहर के अमृत से अच्छा |
हमारे गावँ का पानी भला है ||
जो दिल से काम लेते हैं उन्हें तो |
सदा ही भावनाओं ने छला है ||
ख़ुदा क्या ख़ुद को भी मैं भूल बैठा |
अरे ये इश्क़ देखो क्या बला है ||
चुराके दिल दिखाओ पारसाई |
हमें बस आपसे ये ही गिला है ||
मेरी बन्दूक हो कांधा तुम्हारा |
यही तो आज जीने की कला है ||
वफ़ा के नाम पर हम जान देदें |
हमें तो ये विरासत में मिला है ||
मुसलसल लहर टकराती है देखो |
नहीं साहिल हिलाए से हिला है ||
मेरा तो नाम तक भी भूल बैठा |
मगर ग़ैरों से क़ाफ़िर जा मिला है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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