लोगों से तू चाहे परदादारी रख |
मुझसे थोड़ी सी तो आपसदारी रख ||
लीक पे चलना तो दुनिया की आदत है |
अपनी कुछ बातें दुनिया से न्यारी रख ||
जिसके घर कल पूरी बोतल पी आया |
उसके ग़म में भी कुछ हिस्सेदारी रख ||
मुझको मेरी तन्हाईं में जीने दे |
ले तू अपने पास ये दुनिया सारी रख ||
हिंदी उर्दू के चक्कर में मत पड़ना |
दिल के यूँ जज़्बात सुनाना जारी रख ||
माना की महबूब रूठ कर चला गया |
तू भी अपने अंदर कुछ ख़ुद्दारी रख ||
घायल हों जज़्बात कभी तो मत डरना |
तू अपनी चाहत का पलड़ा भारी रख ||
हो हंगामा कोई इससे पहले ही |
मैख़ाने से उठने की तैयारी रख ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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