चाँद तारों की महफ़िल सजी है |
आ भी जाओ तुम्हारी कमी है ||
चाँद की मेज़बानी में पीलो |
चांदनी रात साक़ी बनी है ||
सोचता है मुझे अजनबी हूँ |
उस सितमगर की ये दिल्लगी है ||
उनसे उनकी शिकायत तो कर दी |
या ख़ुदा क्या अजब बेख़ुदी है ||
बाँट दो सब को आकर उजाले |
देखिये हर तरफ तीरगी है ||
जी रहा हूँ मैं फज़्ले ख़ुदा पर |
कुछ दुआओं ने इमदाद की है ||
झूठ किसने उड़ा दी ख़बर ये ?
मैंने कहनी ग़ज़ल छोड़ दी है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
बेबसी बेकली बेकसी है |
क्या इसी को कहूँ ? जिंदगी है ||
आ गया हूँ मैं ये किस जगह पर |
हर कोई दीखता अजनबी है ||
ठीक से घर अमीरों के बैठो |
इनका सोफा बड़ा कीमती है ||
आँख उससे मिलाना सम्भल के |
वो नज़र का बड़ा पारखी है ||
मैंने बेटी को दी है लियाक़त |
पर पडोसी ने बस कार दी है ||
मेरी क़श्ती को देखा उभरते |
मौज फिर आके टकरा गई है ||
वासना है हवस और वहशत |
नाम इस का ही बस आशक़ी है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
आजकल लोगों में अपना हो रहा चर्चा बहुत |
लोग दानिशमंद हैं या फिर मैं ही हूँ अच्छा बहुत ||
दिल लगाकर आपसे मैं मुश्किलों में पड़ गया |
लोग कहते हैं की अब मैं उड़ रहा ऊँचा बहुत ||
मेरे नग़में मेरे छोटे पन में दब के रह गए |
वो रिसालों में छपा क्या उसका था रुतबा बहुत ?
अब ज़रा सख़्ती दिखाने का सही पल आगया |
सामने उनके किया हमने अरे सजदा बहुत ||
हैं नहीं यूँ हर किसी से ठीक यें नज़दीकियाँ |
फ़ासला भी बीच में रक्खा करो थोड़ा बहुत ||
तेरे मेरे तेरे बीच में बस एक यही तो फर्क है |
मैं तुझे चाहा बहुत पर तू ने दिल तोडा बहुत ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment