क्या ख़्यालों से खोखला हूँ मैं ?
इन सवालात से घिरा हूँ मैं ||
आज मेरा वजूद क्या कुछ है ?
आईने से ये पूछता हूँ मैं ||
मेरी हस्ती उबर नहीं पाई |
दर्द के बोझ से लदा हूँ मैं ||
ख़ुद से बाहर नहीं निकल पाता |
ख़ुद में सिमटा सा दायरा हूँ मैं ||
अपनी तक़दीर के सितारों में |
इक बुलंदी को ढूंढता हूँ मैं ||
वक़्त एसा भी मैंने देखा है |
ग़र्क़ होने से बस बचा हूँ मैं ||
बिन रुके रोज़ चल रहा अब तक |
आज भी एक फ़ासिला हूँ मैं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
Very nice sir...
ReplyDeletethank you very much
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