Monday 19 December 2011

मेरी अश्कबार


मेरी  अश्कबार आँखों का    जो    तू   ख़याल  करता |
क्यूँ  ज़माना फिर ये  मुझसे  इतने   सवाल   करता ||

मेरी  सोच  को  परखने  का  मिला  नहीं   है  मौक़ा |
मैं  भी ज़िंदगी में अपनी कुछ  तो  कमाल   करता ||

तू  जो मेरे साथ होता मेरा रहनुमा    सा   बन  कर |
मुझे आज  आके दुशमन  नहीं  पायमाल    करता ||

किसी फ़ैसले से पहले क्या नहीं था ये     मुनासिब |
कुछ तू सवाल करता  कुछ   मैं    सवाल   करता  ||

कोई साथ में नहीं था जो  बढ़ाता  रहता  हिम्मत |
मैं  अकेला ज़िंदगी से  कब तक ज़िदाल   करता ||

मेरे सर पे हाथ रख  कर  मेरी   चूमता  ज़बीं  को |
दुनिया में  एसे मिल कर कोई तो निहाल करता || 

जो मिला उसी को पाकर मैं तो मुतमैयन रहा हूँ |
ये तो मर्ज़ी है ख़ुदा की  कैसे    मलाल    करता ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी       

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