मेरी अश्कबार आँखों का जो तू ख़याल करता |
क्यूँ ज़माना फिर ये मुझसे इतने सवाल करता ||
मेरी सोच को परखने का मिला नहीं है मौक़ा |
मैं भी ज़िंदगी में अपनी कुछ तो कमाल करता ||
तू जो मेरे साथ होता मेरा रहनुमा सा बन कर |
मुझे आज आके दुशमन नहीं पायमाल करता ||
किसी फ़ैसले से पहले क्या नहीं था ये मुनासिब |
कुछ तू सवाल करता कुछ मैं सवाल करता ||
कोई साथ में नहीं था जो बढ़ाता रहता हिम्मत |
मैं अकेला ज़िंदगी से कब तक ज़िदाल करता ||
मेरे सर पे हाथ रख कर मेरी चूमता ज़बीं को |
दुनिया में एसे मिल कर कोई तो निहाल करता ||
जो मिला उसी को पाकर मैं तो मुतमैयन रहा हूँ |
ये तो मर्ज़ी है ख़ुदा की कैसे मलाल करता ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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