यार ख़ामोशी का पत्थर तोडिये तो |
प्यार से दो बोल मीठे बोलिये तो ||
दर पे दस्तक दे रहीं सूरज की किरने |
उठ के बंद खिड़की को जाकर खोलिये तो ||
रात बस्ती में लुटा जिस जिस का घर है |
उसके आँसू पास जाकर पोंछिये तो ||
क्या ज़रूरत आपके मां बाप को है ?
इसके बारे में कभी कुछ सोचिये तो ||
आपकी करनी मुक़ाबिल आप के है |
अब ज़रा सा अपने सर को नोचिये तो ||
मेरे घर के पास से बहती है गंगा |
क्या हुआ जो पावँ उसमें धो लिये तो ||
अनगिनत बिखरे पड़े हैं इस जहाँ में |
डूब कर सागर में मोती खोजिये तो ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
सबको भाती हुई ज़िन्दगी चाहिये |
गीत गाती हुई ज़िन्दगी चाहिये ||
चैन के साथ में साँस चलती रहे |
गुनगुनाती हुई ज़िन्दगी चाहिये ||
चार दिन की मिले पर मिले तो सही |
मुस्कुराती हुई ज़िन्दगी चाहिये ||
मैं उसुलों में जकड़ा हुआ आदमी |
सर उठाती हुई ज़िन्दगी चाहिये ||
छीन कर दर्द सारे जहाँ के लिये |
सुख लुटाती हुई ज़िन्दगी चाहिये ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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