सूरत से जाना पहचाना लगता है |
ये क़ातिल होगा क्या एसा लगता है ?
पल - पल गिरगिट जैसा रंग बदलता है |
करतूतों से ये दीवाना लगता है ||
बार - बार ये बिजली हम पर गिरती है |
दुश्मन का इससे याराना लगता है ||
मेरी रूदाद - ए - ग़म पे वो हँसतें हैं |
उनको ये कोरा अफ़साना लगता है ||
अपनी बस्ती में ही क़ातिल रहता हो |
अक्सर क्या इसका अन्दाज़ा लगता है ?
डा० सुरेन्द्र सैनी
जायें नज़रें जिधर ढूंढता हूँ |
दिलरुबा हमसफ़र ढूंढता हूँ ||
एक अरसा हुआ मुस्कुराये |
क़ह्क़हों का नगर ढूँढता हूँ ||
जब से आये हैं क़ातिल नगर में |
हादिसों का असर ढूंढता हूँ ||
क्या नज़र लग गई है चमन को ?
इक रूहानी नज़र ढूंढता हूँ ||
है नये पेड़ की छावँ चंचल |
मैं पुराना शजर ढूंढता हूँ ||
जानता हूँ तू है मेरे दिल में |
तुझको फिर भी मगर ढूंढता हूँ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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