है यहाँ पर भीड़ पर महफ़िल नहीं है |
ये जगह तक़रीर के क़ाबिल नहीं है ||
राबता आपस में क्या क़ायम रहेगा |
याँ के बाशिंदों में उतना दिल नहीं है ||
नेकबख्तों की बनी फ़ेहरिस्त है जो |
नाम उसमें क्यूँ मेरा शामिल नहीं है ?
बेगु़नाहों की हज़ारों हैं दलीलें |
साफ़ नीयत का मगर आदिल नहीं है ||
लोग दावेदारी लेकर आ गए सब |
एक भी इनमें मगर कामिल नहीं है ||
क़ायदा क़ानून सारा जानता है |
आज का इंसान यूँ गा़फ़िल नहीं है ||
बोझ ख़ुद का ख़ुद ही पड़ता है उठाना |
एक भी हामिल हमें हासिल नहीं है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
चार पैसे दान में बस क्या दिए हैं |
शहर भर में पोस्टर टंगवा दिए हैं ||
अब के होगी जीत पक्की ही हमारी |
बस्ती में दारु के ड्रम खुलवा दिए हैं ||
ये बशर जो सच के पर्चे बांटता था |
हाथ इसके आज ही कटवा दिए हैं ||
जब भी पूछा क्या किया है ज़िंदगी में ?
बस ज़रा सा हौले से मुस्का दिए हैं ||
आज आमद है किसी लीडर की शायद |
रास्तों पर फूल जो बिछवा दिए हैं ||
उम्र भर जो बुतपरस्ती से लड़े थे |
हमने उनके बुत भी अब बनवा दिए हैं ||
छाँट कर शातिर से शातिर लोग हमने |
राजधानी में सभी भिजवा दिए हैं ||
कल वही पेपर में टीचर पूछ लेगा |
प्रश्न सारे आज जो समझा दिए हैं ||
साब जब से बन गए फूफा हमारे |
डॉग भी इम्पोर्टेड मंगवा दिए हैं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
वो तुझसे चाहता है क्या ?
कभी तू सोचता है क्या ?
हमीं से है परायापन |
ये आख़िर माज़रा है क्या ?
क़सम खाई न पीने की |
मगर दिल मानता है क्या ?
हमारे बीच क़ातिल को |
कोई पहचानता है क्या ?
तुम्हारे बिन जहाँ में अब |
हमारा आसरा है क्या ?
डा० सुरेन्द्र सैनी
वो कीनावर है कीना चाहता है |
तभी पत्थर का सीना चाहता है ||
ख़ुदा ने की हैं जब सांसे मुक़र्रर |
क्यूँ लम्बी उम्र जीना चाहता है ?
उसे सेहत इजाज़त दे न दे पर |
शराबी रोज़ पीना चाहता है ||
पिरोकर वक़्त की सुईयों में सांसे |
बशर ज़ख्मों को सीना चाहता है ||
मिले जो अनछुवा हाथों से तेरे |
तेरा मैकश वो मीना चाहता है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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