कुछ को मिला सब कुछ मगर कुछ जी रहे हैं अभाव में |
यह खो दिया वह पा लिया हर आदमी है तनाव में ||
दो चार तिनकों से फ़क़त इक आशियाँ जो बना लिया |
वो आँधियों की ज़द में है यूँ उड़ न जाए बहाव में ||
मुंसिफ़ की नीयत पर अबस उठते नहीं यें सवाल यूँ |
क्यूँ फ़ैसले देने लगा वो क़ातिलों के दबाव में ?
चुपचाप कोई सह रहा शैतान के ज़ुल्म - ओ - सितम |
उठ्ठा नहीं है एक भी तो हाथ उसके बचाव में ||
जाने कहाँ पर आ गए हम मंजिलों की तलाश में ?
शायद कमी कुछ रह गई थी रास्ते के चुनाव में ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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