Wednesday 8 June 2011

सीधी सादी ग़ज़लें (जारी)


आग पानी  में  लगाने   की ज़िद छोड़ भी दो |
हाथ  सुरज  से मिलाने की   ज़िद छोड़ भी दो ||

आँख के हैं न जो अन्धें मगर अख़लाक़ के हैं |
आइना उनको दिखाने की ज़िद  छोड़  भी दो ||

अपनी   फ़ितरत  से  वफ़ा  के  हम  हैं  शैदाई |
ख़ाक में हमको मिलाने की ज़िद छोड़  भी दो ||

गुस्सा जायज़ है तो फिर जम के निकालो यारो |
ख़ामख़ा   उस  को  पचाने ज़िद   छोड़   भी  दो ||

जो भी  हल्का हुआ  दुनिया में वो ऊपर ही उठा |
फ़ालतू  बोझ   उठाने की  ज़िद  छोड़    भी    दो ||

आपसी   बात  है   मिल    बैठ   के   सुलझा लीजे |
रूठ   के  औरों  पे  जाने की  ज़िद   छोड़   भी दो ||

सैंकड़ों  हैं  गिलें किस -  किस  पे  फाँसी     चढ़ लें ?
पल में यूँ ख़ुद को मिटाने की  ज़िद  छोड़  भी दो ||

                                                                                   डा० सुरेन्द्र सैनी 

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