आग पानी में लगाने की ज़िद छोड़ भी दो |
हाथ सुरज से मिलाने की ज़िद छोड़ भी दो ||
आँख के हैं न जो अन्धें मगर अख़लाक़ के हैं |
आइना उनको दिखाने की ज़िद छोड़ भी दो ||
अपनी फ़ितरत से वफ़ा के हम हैं शैदाई |
ख़ाक में हमको मिलाने की ज़िद छोड़ भी दो ||
गुस्सा जायज़ है तो फिर जम के निकालो यारो |
ख़ामख़ा उस को पचाने ज़िद छोड़ भी दो ||
जो भी हल्का हुआ दुनिया में वो ऊपर ही उठा |
फ़ालतू बोझ उठाने की ज़िद छोड़ भी दो ||
आपसी बात है मिल बैठ के सुलझा लीजे |
रूठ के औरों पे जाने की ज़िद छोड़ भी दो ||
सैंकड़ों हैं गिलें किस - किस पे फाँसी चढ़ लें ?
पल में यूँ ख़ुद को मिटाने की ज़िद छोड़ भी दो ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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