Thursday 9 June 2011

सीधी सादी ग़ज़लें (जारी)


ये  ग़ज़ल  ही  नहीं   ज़िन्दगी    है |
मेरे   ख़ाबों   की   ये  पालकी   है ||

दिल तो लफ़्ज़ों से खेले ग़ज़ल के |
बस  ग़ज़ल  से  मिले  ताज़गी है ||

जब भी  आते हैं  ग़म  के अन्धेरें |
तब   ग़ज़ल  ही  सुकूँ  बाँटती  है ||

याद  आती  है  पी  की मुसलसल |
बन  के  साथी  ग़ज़ल  बैठती  है ||

जब जुबां कुछ भी कहना न चाहे |
आगे  बढ़  के  ग़ज़ल  बोलती  है ||

मन ही  मन में घुटन  हो रही हो |
मन  की गांठें   ग़ज़ल  खोलती है ||

आपकी  पैंठ   कितनी   है   गहरी ?
आदमी   को    ग़ज़ल  तौलती  है ||

सिर्फ  दिल ही   नहीं   भावना  की |
भी   ग़ज़ल   से  मिले  बानगी  है ||

भूख  हो  प्यास   हो  मुस्कुरा  कर |
ज़िन्दगी   की    ग़ज़ल  खेलती  है ||

                                                                    डा० सुरेन्द्र सैनी 


ख्वाहिशें  हैं मेरी  कम  मैं  इसीलिए  तो अच्छा हूँ |
हर पल रहता ताज़ादम मैं  इसीलिए तो अच्छा हूँ ||

उसके सुख में हँसता हूँ उसके दुःख में कर लेता हूँ |
मैं भी  अपनी आँखें नम मैं   इसीलिए तो अच्छा हूँ ||

और की ख़ुशियों में  शामिल  हो  के  बाँटू मैं ख़ुशी |
चिढ नहीं तो कैसा ग़म मैं  इसीलिए  तो अच्छा हूँ ||

मन की पीड़ा को ग़ज़ल में अक्सर कहता रहता हूँ |
झट आंसू   जाते  हैं थम मैं  इसीलिए तो अच्छा हूँ ||

मुझसे भी हो जाती है तो फिर औरों की गलती पर |
लहजा रक्खूं ख़ास नरम  मैं  इसीलिए तो अच्छा हूँ ||

                                                                                      डा० सुरेन्द्र सैनी 

मुस्कुरा कर मिले एक  पल |
हो  गई  नाम उनके ग़ज़ल || 

ज़िन्दगी  के   उलट  फेर  में |
वो भी उलझे हुए  आजकल ||

आपका   हुस्न   बाँका   सही |
प्यार   मेरा   मगर है  सरल ||

मुश्किलों   से   न   मायूस हो |
ग़ैर - मुमकिन नहीं कोई हल ||

रहबरों  के    सितम  याद  कर |
फिर  उसी रहगुज़र पे न चल ||

                                                    डा० सुरेन्द्र सैनी 


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