ये ग़ज़ल ही नहीं ज़िन्दगी है |
मेरे ख़ाबों की ये पालकी है ||
दिल तो लफ़्ज़ों से खेले ग़ज़ल के |
बस ग़ज़ल से मिले ताज़गी है ||
जब भी आते हैं ग़म के अन्धेरें |
तब ग़ज़ल ही सुकूँ बाँटती है ||
याद आती है पी की मुसलसल |
बन के साथी ग़ज़ल बैठती है ||
जब जुबां कुछ भी कहना न चाहे |
आगे बढ़ के ग़ज़ल बोलती है ||
मन ही मन में घुटन हो रही हो |
मन की गांठें ग़ज़ल खोलती है ||
आपकी पैंठ कितनी है गहरी ?
आदमी को ग़ज़ल तौलती है ||
सिर्फ दिल ही नहीं भावना की |
भी ग़ज़ल से मिले बानगी है ||
भूख हो प्यास हो मुस्कुरा कर |
ज़िन्दगी की ग़ज़ल खेलती है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
ख्वाहिशें हैं मेरी कम मैं इसीलिए तो अच्छा हूँ |
हर पल रहता ताज़ादम मैं इसीलिए तो अच्छा हूँ ||
उसके सुख में हँसता हूँ उसके दुःख में कर लेता हूँ |
मैं भी अपनी आँखें नम मैं इसीलिए तो अच्छा हूँ ||
और की ख़ुशियों में शामिल हो के बाँटू मैं ख़ुशी |
चिढ नहीं तो कैसा ग़म मैं इसीलिए तो अच्छा हूँ ||
मन की पीड़ा को ग़ज़ल में अक्सर कहता रहता हूँ |
झट आंसू जाते हैं थम मैं इसीलिए तो अच्छा हूँ ||
मुझसे भी हो जाती है तो फिर औरों की गलती पर |
लहजा रक्खूं ख़ास नरम मैं इसीलिए तो अच्छा हूँ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
मुस्कुरा कर मिले एक पल |
हो गई नाम उनके ग़ज़ल ||
ज़िन्दगी के उलट फेर में |
वो भी उलझे हुए आजकल ||
आपका हुस्न बाँका सही |
प्यार मेरा मगर है सरल ||
मुश्किलों से न मायूस हो |
ग़ैर - मुमकिन नहीं कोई हल ||
रहबरों के सितम याद कर |
फिर उसी रहगुज़र पे न चल ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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