दिखा कर एक बस आँखों में आंसू |
अजी लो वो कहे हमको जफ़ाजू ||
लहर से सीख ग़ुस्से को मिटाना |
समंदर के किनारे बैठ जा तू ||
फ़क़त इंसान का ही दिल जहाँ में |
ख़ुदी को तौलने का है तराजू ||
वो तन्हाँ रह गया सारे सफ़र में |
चला जो देख कर आजू न बाज़ू ||
बड़े सीधे हुआ करते थे पहले |
मगर हैं आज के दिलबर लड़ाकू ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
जब से वो मशहूर हुए हैं |
थोड़े से मग़रूर हुए हैं ||
मुझसे थी तक़रार ज़रा सी |
क्यों दुनिया से दूर हुए हैं ?
दिल ने क्या क्या ख़ाब सजाये |
सब खट्टे अँगूर हुए हैं ||
शमशीरों के बीच खड़े हैं |
हम एसे मजबूर हुए हैं ||
मजदूरों की मांग न मानी |
इस्तीफें मंजूर हुए हैं ||
बोनस देगें साब बहादुर |
वादे तो भरपूर हुए हैं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
साथ जो सबके चला है |
आदमी वो ही भला है ||
ज़िन्दगी - ओ - मौत में बस |
इक घडी का फ़ासला है ||
आज बस्ती बच गई है |
बाढ़ का ख़तरा टला है ||
आँख नाम कर ले ज़रा सी |
रास्ते में करबला है ||
देख उससे बच निकलना |
फ़ितरतन वो मनचला है ||
अब न हम आगे झुकेगें |
ये हमारा फ़ैसला है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
इससे मिल या उससे मिल |
जब दिल चाहे मुझसे मिल ||
ठुकरादे जब ये दुनिया |
तब तू आ कर हमसे मिल ||
मिल उनसे जो अच्छे हैं |
कब कहता हूँ सबसे मिल ?
तेरे अन्दर रहता है |
हरदम तू उस रब से मिल ||
उसकी जानिब फिर बढ़ना |
पहले तो तू ख़ुद से मिल ||
घर में पहले तू बतिया |
फिर चाहे तू जिससे मिल ||
मत मिल हमसे कतरा कर |
मिलना है तो दिल से मिल ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
तू मत सभी पे यकीन कर |
अपनी ख़ुदी पे यकीन कर ||
जो दी ख़ुदा ने ख़ुशी ख़ुशी |
उस ज़िन्दगी पे यकीन कर ||
ये कुछ दवा है न काम की |
मत मैकशी पे यकीन कर ||
दो पल मुझे भी नवाज़ दे |
आ बेकली पे यकीन कर ||
जब मुश्किलों का न हल मिले |
तब बंदगी पे यकीन कर ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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