दस्तूर ज़माने का बदला हुआ लगता है |
हर शख्स़ मुझे अब क्यूँ बहका हुआ लगता है ?
ऊंचाई में दिखता है जो ख़ुद किसी परबत सा |
किरदार से बिल्कुल ही गिरता हुआ लगता है ||
मासूम परिन्दा ये ठिठुरा है न सर्दी में |
दहशत से शिकारी की सहमा हुआ लगता है ||
रफ़्तार हमारी है जब वक़्त से भी आगे |
तब ही तो समय हमको ठहरा हुआ लगता है ||
अब लोग नहीं मिलते कांधा जो किसी को दें |
हर कोई बज़ाहिर यूँ उलझा हुआ लगता है ||
साहिल पे ठहरती हैं लहरें न समन्दर की |
साहिल का समन्दर से झगड़ा हुआ लगता है ||
इस दौर - ऐ- सियासत में ये किसकी हिमाक़त से ?
अब ज़हर फ़ज़ाओं में घुलता हुआ लगता है ||
घबराने लगा देखो आहट से ये अपनी अब |
ये शख्स़ मुसीबत से गुज़रा हुआ लगता है ||
क़ानून की नज़रों से हर बार जो बच जाता |
क़ातिल है खिलाड़ी वो सुलझा हुआ लगता है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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