जुस्तुजू में प्यार की मैं उम्र भर चलता रहा |
धार पर तलवार की मैं उम्र भर चलता रहा ||
बाल भी बांका न कर पायी सफ़र में आंधियाँ |
बांह थामे यार की मैं उम्र भर चलता रहा ||
अब मिलेगीं अब मिलेगीं ढेर सारी नेमतें |
मान कर सरकार की मैं उम्र भर चलता रहा ||
ज़िन्दगी के खेल में सब दावँ उलटे ही पड़े |
और ज़ानिब हार की मैं उम्र भर चलता रहा ||
पावँ के छाले शिकायत करते करते थक गये |
बात थी किरदार की मैं उम्र भर चलता रहा ||
ढूंढ ही लूगां उसे शायद यहाँ शायद वहाँ |
आस में बेकार की मैं उम्र भर चलता रहा ||
पेट भर रोटी की ख़ातिर और इक छत के लिये |
फ़िक्र कर परिवार की मैं उम्र भर चलता रहा ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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