Monday, 30 May 2011

सीधी सादी ग़ज़लें (जारी)


मुस्कुराने  की   बात  करते   हो |
किस ज़माने  की बात करते हो ?

मौत  के  आप  शामियानों  में |
सर  उठाने  की  बात करते हो ||

आसमाँ  पर  नसीब  हो शायद |
आशियाने  की  बात  करते हो ||

क्यूँ मियाँ आप मेरे का़तिल से ?
दिल लगाने की  बात  करते हो ||

गूँगे बहरों की आम महफ़िल में |
कुछ सुनाने की  बात  करते हो ||

पहले  यादों  पे  हो गए क़ाबिज़ |
अब भुलाने की  बात  करते हो ||

हम यहाँ आ गए ये क्या कम है |
क्यूँ  फंसाने  की बात  करते हो ?

मैं  तुम्हें   मान  लूं  ख़ुदा  कैसे ?
सर कटाने  की  बात  करते  हो ||

है ये  एहसास-ए-कमतरी शायद |
मुहँ छुपाने  की  बात  करते  हो ||

आज  ये  कौन  सी  शरारत   है ?
घर  बुलाने  की  बात  करते हो ||

                                                  डा० सुरेन्द्र सैनी 


 दर्दे दिल की  दवा कुछ  नहीं |
उनकी हाँ के सिवा कुछ नहीं ||

आफ़तें   तोहमतें    ज़हमतें |
और उनसे मिला कुछ  नहीं ||

किसकी खायें क़सम  दोस्तों ?
पास  अपने बचा कुछ  नहीं ||

मैं   सरे   आम  लूटा   गया |
फिर भी मैंने कहा कुछ  नहीं ||

अपनी नज़रों से जो गिर गया |
इससे बढ़ के सज़ा कुछ  नहीं ||

                                              डा० सुरेन्द्र सैनी 

No comments:

Post a Comment