मुस्कुराने की बात करते हो |
किस ज़माने की बात करते हो ?
मौत के आप शामियानों में |
सर उठाने की बात करते हो ||
आसमाँ पर नसीब हो शायद |
आशियाने की बात करते हो ||
क्यूँ मियाँ आप मेरे का़तिल से ?
दिल लगाने की बात करते हो ||
गूँगे बहरों की आम महफ़िल में |
कुछ सुनाने की बात करते हो ||
पहले यादों पे हो गए क़ाबिज़ |
अब भुलाने की बात करते हो ||
हम यहाँ आ गए ये क्या कम है |
क्यूँ फंसाने की बात करते हो ?
मैं तुम्हें मान लूं ख़ुदा कैसे ?
सर कटाने की बात करते हो ||
है ये एहसास-ए-कमतरी शायद |
मुहँ छुपाने की बात करते हो ||
आज ये कौन सी शरारत है ?
घर बुलाने की बात करते हो ||
घर बुलाने की बात करते हो ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
दर्दे दिल की दवा कुछ नहीं |
उनकी हाँ के सिवा कुछ नहीं ||
आफ़तें तोहमतें ज़हमतें |
और उनसे मिला कुछ नहीं ||
किसकी खायें क़सम दोस्तों ?
पास अपने बचा कुछ नहीं ||
मैं सरे आम लूटा गया |
फिर भी मैंने कहा कुछ नहीं ||
अपनी नज़रों से जो गिर गया |
इससे बढ़ के सज़ा कुछ नहीं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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